28 मई 2025 को अल जज़ीरा ने खबर दी कि ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी एम्बेसीज़ को नए स्टूडेंट वीजा इंटरव्यू शेड्यूल करने से रोक दिया है। यह फैसला एक आंतरिक स्टेट डिपार्टमेंट केबल के आधार पर लिया गया, जिसे रॉयटर्स और न्यू यॉर्क टाइम्स ने भी देखा। इसका मतलब है कि जो छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने का सपना देख रहे हैं, उन्हें अब अनिश्चितता का सामना करना पड़ेगा। सीएनबीसी टीवी18 के मुताबिक, यह खबर खासकर भारतीय छात्रों के लिए परेशानी वाली है, जो हर साल हज़ारों की संख्या में अमेरिका जाते हैं। यह पॉज अस्थायी है, लेकिन कितने समय तक चलेगा, यह स्पष्ट नहीं है।
यह फैसला सोशल मीडिया स्क्रीनिंग को बढ़ाने की योजना का हिस्सा है। वॉशिंगटन पोस्ट ने बताया कि स्टेट डिपार्टमेंट छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की गहन जाँच करना चाहता है। अल जज़ीरा के अनुसार, यह नीति उन छात्रों को प्रभावित करेगी जो फॉल 2025 सेशन के लिए एडमिशन ले चुके हैं। भारतीय छात्र, जो अमेरिका में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय छात्र समूह हैं, इस बदलाव से सबसे ज़्यादा चिंतित हैं। बिज़नेस टुडे ने बताया कि 788 भारतीय छात्रों को हार्वर्ड से ट्रांसफर या डिपोर्ट होने का खतरा है। क्या यह नीति पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने का सपना तोड़ देगी? आइए, इसकी गहराई में जाएँ।
भारतीय छात्रों पर क्या असर पड़ेगा?
भारत से हर साल लाखों छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने जाते हैं। सीएनबीसी टीवी18 के अनुसार, 2024 में 3 लाख से ज़्यादा भारतीय छात्रों ने यूएस स्टूडेंट वीजा लिया। लेकिन अब इस पॉज ने उनके सपनों पर ब्रेक लगा दिया है। अल जज़ीरा ने बताया कि यह पॉज नए इंटरव्यू अपॉइंटमेंट्स पर लागू है, यानी जिन छात्रों ने पहले से अपॉइंटमेंट बुक कर लिया है, वे सुरक्षित हैं। लेकिन जो छात्र अब अप्लाई करना चाहते हैं, उन्हें इंतज़ार करना होगा। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि यह पॉज फॉल 2025 सेशन को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि ज़्यादातर यूनिवर्सिटीज़ मार्च-अप्रैल तक एडमिशन देती हैं।
बिज़नेस टुडे के मुताबिक, भारतीय छात्रों को अब सोशल मीडिया स्क्रीनिंग का भी सामना करना पड़ेगा। अगर आपके पोस्ट्स में कुछ भी “विवादास्पद” पाया गया, तो वीजा रिजेक्ट हो सकता है। द गार्जियन ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने पहले भी प्रो-फिलिस्तीन प्रदर्शनों में शामिल छात्रों के वीजा रद्द किए हैं। X पर एक यूज़र ने लिखा कि यह नीति भारतीय छात्रों के लिए “अनुचित” है। रॉयटर्स के अनुसार, यह पॉज यूनिवर्सिटीज़ की कमाई को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय छात्र $43.8 बिलियन सालाना योगदान देते हैं। क्या भारतीय छात्रों को अब दूसरी योजनाएँ बनानी होंगी? आइए, आगे जानते हैं।
सोशल मीडिया स्क्रीनिंग: क्या है यह नया नियम?
इस पॉज का एक बड़ा कारण है सोशल मीडिया स्क्रीनिंग। न्यू यॉर्क टाइम्स ने बताया कि स्टेट डिपार्टमेंट अब हर वीजा आवेदक के सोशल मीडिया अकाउंट्स की जाँच करेगा। वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्को रुबियो ने इसकी शुरुआत की। इसका मकसद उन छात्रों को रोकना है जो “अमेरिकी मूल्यों” के खिलाफ पोस्ट करते हैं। अल जज़ीरा ने उदाहरण दिया कि एक तुर्की छात्र रुमेय्सा ओज़तुर्क को प्रो-फिलिस्तीन ओप-एड लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया।
एनपीआर के अनुसार, यह स्क्रीनिंग उन छात्रों को निशाना बना सकती है जो गाजा युद्ध या अन्य राजनीतिक मुद्दों पर बोलते हैं। भारतीय छात्रों के लिए यह चिंता की बात है, क्योंकि कई लोग सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी राय रखते हैं। बिज़नेस टुडे ने बताया कि अगर आपके पोस्ट्स में कुछ भी संवेदनशील पाया गया, तो वीजा रिजेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। X पर एक पोस्ट में लिखा गया कि यह नीति “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” को कमज़ोर करती है। क्या आपको अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स साफ करने चाहिए? यह सवाल हर छात्र के मन में है।
किन छात्रों को होगा सबसे ज़्यादा नुकसान?
यह पॉज हर उस छात्र को प्रभावित करेगा जो फॉल 2025 में अमेरिका पढ़ने जाना चाहता है। अल जज़ीरा के मुताबिक, जिन छात्रों को हाल ही में एडमिशन मिला है, उन्हें सबसे ज़्यादा परेशानी होगी। रॉयटर्स ने बताया कि फुलब्राइट जैसे प्रोग्राम्स, जो मार्च से जून तक फैसले देते हैं, भी प्रभावित होंगे। भारतीय, चीनी, और मध्य पूर्व के छात्रों पर इसका बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि ये देश सबसे ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्र भेजते हैं।
बिज़नेस टुडे ने बताया कि हार्वर्ड में 788 भारतीय छात्रों को ट्रांसफर या डिपोर्ट होने का खतरा है। द गार्जियन के अनुसार, यह नीति उन छात्रों को भी निशाना बना सकती है जो प्रो-फिलिस्तीन प्रदर्शनों में शामिल हुए। एनपीआर ने कहा कि बोर्डिंग स्कूल और एक्सचेंज प्रोग्राम्स के छात्र भी प्रभावित होंगे। X पर एक यूज़र ने लिखा कि यह पॉज “शिक्षा के वैश्वीकरण” को रोक सकता है। क्या यह नीति केवल सुरक्षा के लिए है, या इसके पीछे कोई राजनीतिक मकसद है? आइए, इस पर और गौर करते हैं।
अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ पर क्या असर पड़ेगा?
अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हैं। अल जज़ीरा के अनुसार, वे हर साल $43.8 बिलियन का योगदान देते हैं। Axios ने बताया कि इस पॉज से यूनिवर्सिटीज़ की कमाई पर असर पड़ेगा। हार्वर्ड, MIT, और स्टैनफर्ड जैसी यूनिवर्सिटीज़ अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर निर्भर हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, हार्वर्ड ने इस नीति को “गैरकानूनी” बताया और मुकदमा दायर किया।
द गार्जियन ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड के फेडरल फंड्स काटने की धमकी दी है, क्योंकि वह प्रो-फिलिस्तीन प्रदर्शनों को नियंत्रित नहीं कर पाया। बिज़नेस टुडे के अनुसार, इस पॉज से यूनिवर्सिटीज़ को स्टाफिंग और प्रोग्राम्स में कटौती करनी पड़ सकती है। X पर एक पोस्ट में लिखा गया कि यह नीति “अमेरिकी शिक्षा की वैश्विक प्रतिष्ठा” को नुकसान पहुँचाएगी। क्या यूनिवर्सिटीज़ इस संकट से उबर पाएँगी? यह समय बताएगा।
ट्रंप प्रशासन की नीति: क्या है मकसद?
ट्रंप प्रशासन की यह नीति कई सवाल उठाती है। अल जज़ीरा ने बताया कि यह पॉज सोशल मीडिया स्क्रीनिंग को लागू करने का हिस्सा है। वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, प्रशासन का कहना है कि यह “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिए जरूरी है। लेकिन द गार्जियन ने बताया कि यह नीति प्रो-फिलिस्तीन प्रदर्शनों को दबाने का तरीका हो सकता है। एनपीआर के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने पहले भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को निशाना बनाया है, जैसे हार्वर्ड के वीजा प्रोग्राम को रद्द करने की कोशिश।
बिज़नेस टुडे ने बताया कि यह नीति ट्रंप के कड़े इमिग्रेशन एजेंडे का हिस्सा है। X पर एक यूज़र ने लिखा कि यह “शिक्षा को राजनीति का शिकार” बना रहा है। रॉयटर्स के मुताबिक, प्रशासन का कहना है कि यह पॉज अस्थायी है, लेकिन कोई समयसीमा नहीं दी गई। क्या यह नीति केवल सुरक्षा के लिए है, या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक खेल है? आइए, आगे देखते हैं।
क्या करें भारतीय छात्र?
इस पॉज ने भारतीय छात्रों को मुश्किल में डाल दिया है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं। सीएनबीसी टीवी18 के मुताबिक, जिन छात्रों ने पहले से इंटरव्यू बुक कर लिया है, वे प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने सुझाव दिया कि छात्र अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की जाँच करें और विवादास्पद पोस्ट्स हटाएँ। बिज़नेस टुडे ने एजुकेशन कंसल्टेंट वायरल दोशी के हवाले से कहा कि छात्र कनाडा या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों पर भी विचार करें।
न्यू यॉर्क टाइम्स ने बताया कि छात्रों को अपने यूनिवर्सिटीज़ से संपर्क में रहना चाहिए, क्योंकि कई यूनिवर्सिटीज़ इस पॉज के खिलाफ कोर्ट में हैं। X पर एक यूज़र ने सलाह दी कि छात्र वीजा अपडेट्स के लिए यूएस एम्बेसी की वेबसाइट चेक करते रहें। इस मुश्किल समय में धैर्य और सही जानकारी बहुत जरूरी है। क्या आप भी इस पॉज से प्रभावित हैं? आइए, अगले हिस्से में और सलाह लेते हैं।
वैकल्पिक देश: कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, या यूके?
अगर अमेरिका का रास्ता बंद हो, तो भारतीय छात्रों के पास और भी विकल्प हैं। सीएनबीसी टीवी18 के मुताबिक, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और यूके भारतीय छात्रों के लिए लोकप्रिय हैं। द गार्जियन ने बताया कि कनाडा में स्टूडेंट वीजा प्रक्रिया आसान है और पढ़ाई के बाद वर्क परमिट मिल सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी अपनी क्वालिटी एजुकेशन और जॉब ऑपर्चुनिटीज़ के लिए जाना जाता है।
बिज़नेस टुडे ने बताया कि यूके का ग्रेजुएट रूट वीजा छात्रों को दो साल तक काम करने की इजाज़त देता है। X पर एक यूज़र ने लिखा कि कनाडा में भारतीय छात्रों को “ज़्यादा स्वागत” मिलता है। लेकिन इन देशों में पढ़ाई की लागत और वीजा नियमों को समझना ज़रूरी है। रॉयटर्स के अनुसार, अमेरिका का यह पॉज अन्य देशों के लिए फायदा हो सकता है। क्या आपको इन देशों में पढ़ाई का प्लान बनाना चाहिए? आइए, आगे देखते हैं।
भविष्य में क्या होगा?
इस पॉज का भविष्य अनिश्चित है। अल जज़ीरा के मुताबिक, स्टेट डिपार्टमेंट ने कोई समयसीमा नहीं दी। न्यू यॉर्क टाइम्स ने बताया कि हार्वर्ड और अन्य यूनिवर्सिटीज़ ने इस नीति के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अगर यह पॉज लंबा चला, तो फॉल 2025 सेशन में दाखिले प्रभावित हो सकते हैं।
बिज़नेस टुडे ने बताया कि भारतीय छात्रों को अब प्लान बी तैयार रखना चाहिए। X पर एक यूज़र ने लिखा कि यह नीति “अमेरिका की वैश्विक छवि” को नुकसान पहुँचा सकती है। रॉयटर्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन की कड़ी इमिग्रेशन नीतियाँ आगे भी जारी रह सकती हैं। क्या यह पॉज जल्द हटेगा, या छात्रों को और इंतज़ार करना होगा? यह समय बताएगा।
निष्कर्ष: क्या करें, क्या न करें?
यह पॉज भारतीय छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन सही कदम उठाकर आप अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। सीएनबीसी टीवी18 की सलाह है कि छात्र यूएस एम्बेसी की वेबसाइट पर अपडेट्स चेक करें। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि सोशल मीडिया पोस्ट्स को सावधानी से मैनेज करें। बिज़नेस टुडे ने सुझाव दिया कि कनाडा या ऑस्ट्रेलिया जैसे विकल्पों पर विचार करें।
X पर एक यूज़र ने लिखा कि “धैर्य और सही जानकारी ही रास्ता दिखाएगी।” रॉयटर्स के मुताबिक, यह पॉज यूनिवर्सिटीज़ और छात्रों के लिए चुनौती है, लेकिन इसका समाधान कोर्ट या नई नीतियों से निकल सकता है। अपने सपनों को मत छोड़ें—सही दिशा में मेहनत करें, और रास्ता ज़रूर मिलेगा। क्या आप इस पॉज से प्रभावित हैं? अपनी राय हमें बताएँ!