AI ने पहली बार बनाया DNA, जो जीन को कंट्रोल करता है: जानिए कैसे

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क्या आपने कभी सोचा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हमारे शरीर के जीन को कंट्रोल कर सकता है? हाल ही में, 10 मई 2025 को, एक स्टडी में ये कमाल हो गया। वैज्ञानिकों ने पहली बार AI की मदद से ऐसा DNA बनाया, जो स्वस्थ कोशिकाओं में जीन को कंट्रोल कर सकता है। ये खोज जीन थेरेपी और बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में क्रांति ला सकती है। आइए, इस स्टडी की पूरी कहानी आसान भाषा में समझते हैं।

AI ने कैसे बनाया DNA?

ये स्टडी सेंटर फॉर जीनोमिक रेगुलेशन (CRG) के वैज्ञानिकों ने की, और इसे Cell नाम के मशहूर जर्नल में छापा गया। वैज्ञानिकों ने एक खास AI टूल बनाया, जो नया DNA डिज़ाइन कर सकता है। इस AI को बताया गया कि ऐसा DNA बनाओ, जो माउस की ब्लड सेल्स में एक खास जीन को ऑन करे। ये जीन एक फ्लोरोसेंट प्रोटीन बनाता है, जो कोशिकाओं को चमकदार बनाता है।

AI ने 250 अक्षरों का एक DNA टुकड़ा बनाया, जो प्रकृति में पहले कभी नहीं देखा गया। फिर इस DNA को केमिकली बनाया गया और एक वायरस के जरिए माउस की कोशिकाओं में डाला गया। नतीजा? DNA ने ठीक वैसे ही काम किया, जैसा वैज्ञानिक चाहते थे। इसने जीन को ऑन किया, बिना बाकी जीन के काम को बिगाड़े।

ये खोज क्यों है खास?

ये स्टडी इसलिए खास है क्योंकि ये पहली बार है जब AI ने स्वस्थ कोशिकाओं में जीन को कंट्रोल करने वाला DNA बनाया है। पहले, वैज्ञानिक प्राकृतिक DNA का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब AI नए DNA टुकड़े बना सकता है। ये खोज जीन थेरेपी को और सटीक बना सकती है। उदाहरण के लिए, AI से बना DNA स्टेम सेल्स को बता सकता है कि वे रेड ब्लड सेल्स बनें, लेकिन प्लेटलेट्स न बनें।

जीन थेरेपी में क्या होगा फायदा?

जीन थेरेपी वो तरीका है, जिसमें जीन को बदलकर बीमारियों का इलाज किया जाता है। AI से बने DNA की मदद से वैज्ञानिक कोशिकाओं को और सटीक निर्देश दे सकते हैं। जैसे, अगर किसी को ब्लड से जुड़ी बीमारी है, तो AI से बना DNA स्टेम सेल्स को सिर्फ रेड ब्लड सेल्स बनाने के लिए कह सकता है। इससे इलाज सुरक्षित और प्रभावी होगा।

ये तकनीक कैंसर, डायबिटीज, और जेनेटिक बीमारियों के इलाज में भी मदद कर सकती है। साथ ही, ये पर्सनलाइज्ड मेडिसिन को बढ़ावा देगी, यानी हर मरीज के लिए खास इलाज।

भारत में इसका भविष्य

भारत में बायोटेक्नोलॉजी तेजी से बढ़ रही है। बेंगलुरु, हैदराबाद, और पुणे जैसे शहर बायोटेक रिसर्च के हब हैं। अगर AI-डिज़ाइन किया गया DNA भारत में इस्तेमाल होता है, तो ये जीन थेरेपी को सस्ता और सुलभ बना सकता है। भारत में जेनेटिक बीमारियां, जैसे थैलेसीमिया, आम हैं। AI की मदद से इनका इलाज आसान हो सकता है।

हालांकि, कुछ चुनौतियां भी हैं। AI-बेस्ड जीन थेरेपी महंगी हो सकती है, और इसके लिए रेगुलेटरी मंजूरी चाहिए। साथ ही, नैतिक सवाल भी उठते हैं—क्या हमें जीन को इतना बदलना चाहिए? फिर भी, भारत की टेक्नोलॉजी और रिसर्च क्षमता इसे मुमकिन बना सकती है।

AI और बायोटेक्नोलॉजी का नया युग

AI और बायोटेक्नोलॉजी का ये मेल एक नए युग की शुरुआत है। पहले AI का इस्तेमाल चैटबॉट्स या इमेज जेनरेशन के लिए होता था, लेकिन अब ये जीन को कंट्रोल कर रहा है। CRG के वैज्ञानिक, जैसे लार्स वेल्टन और जूलिया रूहले, इस क्षेत्र में नए रास्ते खोल रहे हैं।

दुनिया भर में इस स्टडी की तारीफ हो रही है। X पर लोग इसे “जीन थेरेपी का भविष्य” बता रहे हैं। कुछ का कहना है कि ये पर्सनलाइज्ड मेडिसिन को हकीकत बना देगा।

चुनौतियां और सवाल

हर नई तकनीक की तरह, AI-डिज़ाइन DNA के साथ भी सवाल हैं। क्या ये तकनीक सुरक्षित है? अगर DNA गलत जगह इंटीग्रेट हो जाए, तो क्या होगा? साथ ही, ये महंगी तकनीक गरीब देशों तक कैसे पहुंचेगी? भारत जैसे देश में, जहां हेल्थकेयर की पहुंच सीमित है, ये एक बड़ी चुनौती है।

नैतिक सवाल भी अहम हैं। क्या हमें जीन को इतना बदलने का हक है? क्या ये तकनीक गलत हाथों में पड़ सकती है? वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं को इन सवालों का जवाब ढूंढना होगा।

निष्कर्ष: एक नई उम्मीद

AI ने DNA डिज़ाइन करके दिखा दिया कि टेक्नोलॉजी और साइंस मिलकर क्या कर सकते हैं। ये स्टडी जीन थेरेपी, पर्सनलाइज्ड मेडिसिन, और बायोटेक्नोलॉजी के लिए एक नई उम्मीद है। भारत में, जहां बायोटेक इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है, ये तकनीक लाखों जिंदगियां बदल सकती है।

क्या आप इस तकनीक के बारे में और जानना चाहेंगे? या आपको लगता है कि ये भारत में हेल्थकेयर को कैसे बदलेगा? हमें कमेंट में बताएं, और इस आर्टिकल को शेयर करें!

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