18 मई 2025 को हरियाणा पुलिस ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को दिल्ली से गिरफ्तार किया। वजह? ऑपरेशन सिंदूर पर उनकी सोशल मीडिया टिप्पणियां, जो कथित तौर पर “राष्ट्रीय एकता को खतरे में डालने” वाली थीं। यह ऑपरेशन 7 मई को पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर भारत के सैन्य हमले थे, जो 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले (26 मरे) का जवाब था। हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन रेणु भाटिया और बीजेपी युवा मोर्चा के योगेश जठेरी ने दो अलग-अलग FIR दर्ज कीं, जिनमें गंभीर धाराएं लगाई गईं। लेकिन अशोका के फैकल्टी ने इसे “योजनाबद्ध उत्पीड़न” बताया, और प्रोफेसर ने कहा कि उनकी बातों को गलत समझा गया। आइए, इस विवाद, ऑपरेशन सिंदूर, और बोलने की आजादी के सवाल को आसान भाषा में समझें।
अली खान महमूदाबाद कौन हैं?
अली खान महमूदाबाद अशोका यूनिवर्सिटी, सोनीपत में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के हेड और एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनकी पढ़ाई कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (PhD), दमिश्क यूनिवर्सिटी, और अमेरिका के एमहर्स्ट कॉलेज में हुई। वे इतिहास और सामाजिक विज्ञान के विशेषज्ञ हैं और “महमूदाबाद के राजा” मोहम्मद आमिर खान के बेटे हैं। उनकी गिरफ्तारी 18 मई को दिल्ली में उनके घर से हुई, और उन्हें सोनीपत के राई पुलिस स्टेशन ले जाया गया। कोर्ट ने उन्हें 2 दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा, और अगली सुनवाई 20 मई को होगी।
ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी क्या थी?
8 मई को महमूदाबाद ने फेसबुक पर ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग पर टिप्पणी की, जिसमें कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने हिस्सा लिया। उन्होंने लिखा कि राइट-विंग कमेंटेटर्स का कुरैशी की तारीफ करना अच्छा है, लेकिन उन्हें मॉब लिंचिंग और बुलडोजिंग के शिकार लोगों के लिए भी आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने इसे “हिपोक्रेसी” कहा, अगर यह जमीनी हकीकत में नहीं बदलता। उन्होंने “जेनोसाइड” और “डिह्यूमनाइजेशन” जैसे शब्दों का भी जिक्र किया, जो एकता और विविधता पर जोर देते थे। लेकिन हरियाणा महिला आयोग ने इसे “महिला अधिकारियों को बदनाम करने” और “सांप्रदायिक अशांति” फैलाने वाला माना। [ऑपरेशन सिंदूर ब्रीफिंग].
FIR और कानूनी आरोप क्या हैं?
दो FIR दर्ज हुईं:
1. रेणु भाटिया (महिला आयोग): भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (राष्ट्रीय एकता को खतरा), 353 (सार्वजनिक उपद्रव), और 79 (महिला की गरिमा का अपमान) के तहत। भाटिया ने कहा कि पोस्ट में महिला सैन्य अधिकारियों का अपमान हुआ।
2. योगेश जठेरी (बीजेपी युवा मोर्चा): धारा 196 (सांप्रदायिक वैमनस्य), 197 (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बयान), 152, और 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस) के तहत। जठेरी, जो जठेरी गांव के सरपंच भी हैं, ने पोस्ट को “राष्ट्रविरोधी” बताया।
पुलिस ने कहा कि महमूदाबाद ने आयोग के समन को नजरअंदाज किया। डीसीपी नरेंद्र कादयान ने पुष्टि की कि दोनों FIR राई पुलिस स्टेशन में दर्ज हैं।
प्रोफेसर का जवाब: “गलत समझा गया?
महमूदाबाद ने 14 मई को बयान दिया कि उनकी टिप्पणियां “पूरी तरह गलत समझी गईं।” उन्होंने कहा कि पोस्ट में कुरैशी और सिंह की ब्रीफिंग की तारीफ थी, जो भारत की एकता और विविधता का प्रतीक थी। उन्होंने आयोग के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया और कहा, “मेरी टिप्पणियां नागरिकों और सैनिकों की सुरक्षा के लिए थीं, न कि महिला-विरोधी।” उनके वकील कपिल बालyan ने कोर्ट में दलील दी कि महमूदाबाद “राष्ट्रवादी और देशभक्त” हैं, और पोस्ट को गलत तरीके से पेश किया गया।
अशोका फैकल्टी का गुस्सा: “योजनाबद्ध उत्पीड़न?
अशोका यूनिवर्सिटी की फैकल्टी एसोसिएशन ने गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की, इसे “बेबुनियाद और असमर्थनीय” बताया। उन्होंने कहा, “महमूदाबाद को सुबह दिल्ली से गिरफ्तार किया गया, उन्हें दवाइयां नहीं दी गईं, और घंटों बिना सूचना के इधर-उधर ले जाया गया। यह योजनाबद्ध उत्पीड़न है।” फैकल्टी ने उनकी रिहाई और सभी आरोप हटाने की मांग की, उनकी दयालुता और ज्ञान साझा करने की प्रतिबद्धता की तारीफ की। JNU शिक्षक संघ ने भी इसे “अनुचित गिरफ्तारी” बताया।
ऑपरेशन सिंदूर क्या था?
ऑपरेशन सिंदूर 7 मई 2025 को शुरू हुआ, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों पर हमले किए। यह 22 अप्रैल के पहलगाम हमले (26 लोग मरे) का जवाब था, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा की प्रॉक्सी TRF शामिल थी। हमलों में ब्रह्मोस मिसाइल्स, स्कैल्प, और कामिकaze ड्रोन्स का इस्तेमाल हुआ, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए। रक्षा मंत्रालय ने इसे “सटीक और सीमित” ऑपरेशन बताया, जिसमें पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने निशाना नहीं बने। [ऑपरेशन सिंदूर 2025] पढ़ें।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: समर्थन और विरोध?
गिरफ्तारी पर राजनीतिक हलकों में हंगामा मचा। CPI(M), AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, और TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने पुलिस कार्रवाई की निंदा की। मोइत्रा ने कहा कि वे कोर्ट में मामला लड़ेंगी। दूसरी ओर, बीजेपी समर्थकों और जठेरी ने पोस्ट को “राष्ट्रविरोधी” बताया, खासकर ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील समय में। यह विवाद बोलने की आजादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच तनाव को दर्शाता है।
सोशल मीडिया पर चर्चा: जनता क्या कह रही है?
X पर @TheMooknayak और @TheMooknayakEng ने लिखा, “अशोका प्रोफेसर की गिरफ्तारी ने हंगामा मचा दिया।” लोग बोलने की आजादी, अकादमिक स्वतंत्रता, और ऑपरेशन सिंदूर की संवेदनशीलता पर बहस कर रहे हैं। कुछ ने गिरफ्तारी को “अति” बताया, तो कुछ ने इसे “राष्ट्रहित” में जरूरी माना। यह दिखाता है कि जनता इस मुद्दे पर बंटी हुई है, खासकर भारत-पाकिस्तान तनाव के बाद।
बोलने की आजादी बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा?
यह मामला बोलने की आजादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच टकराव को उजागर करता है। महमूदाबाद के समर्थक कहते हैं कि उनकी टिप्पणियां अकादमिक और लोकतांत्रिक थीं, जो भारत की एकता की बात करती थीं। लेकिन आलोचक मानते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे समय में ऐसी टिप्पणियां “सांप्रदायिक अशांति” फैला सकती हैं। पहले भी मुंबई में एक महिला के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना पर FIR हुई थी। क्या अकादमिक स्वतंत्रता की सीमा होनी चाहिए?
अशोका यूनिवर्सिटी का रुख?
अशोका यूनिवर्सिटी ने कहा कि वे पुलिस जांच में सहयोग कर रहे हैं और मामले की जानकारी जुटा रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि महमूदाबाद की टिप्पणियां यूनिवर्सिटी की राय नहीं दर्शातीं। लेकिन फैकल्टी और छात्रों का गुस्सा दिखाता है कि यूनिवर्सिटी समुदाय इस गिरफ्तारी से नाराज है। यह अशोका की उदार छवि और सरकारी दबाव के बीच तनाव को भी दर्शाता है।
आगे क्या? कोर्ट और जनता का इंतजार?
20 मई को कोर्ट में अगली सुनवाई होगी, जहां महमूदाबाद की जमानत पर फैसला हो सकता है। फैकल्टी और विपक्षी नेता उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं, जबकि बीजेपी समर्थक कार्रवाई को सही ठहरा रहे हैं। यह मामला बोलने की आजादी, अकादमिक स्वतंत्रता, और राष्ट्रीय सुरक्षा की बहस को और गर्माएगा। क्या आप मानते हैं कि प्रोफेसर की टिप्पणियां गलत थीं? अपनी राय कमेंट में शेयर करें, और ताजा अपडेट्स के लिए [यहां क्लिक करें]। और [ऑपरेशन सिंदूर अपडेट] पढ़ें।