हाल ही में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को लेकर एक नया सियासी विवाद सुर्खियों में है। बीजेपी ने दावा किया है कि थरूर को उनकी ही पार्टी में राहुल गांधी के इशारे पर निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय हित को परिवार और पार्टी से ऊपर रखा। यह विवाद तब शुरू हुआ, जब थरूर ने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भारत द्वारा नियंत्रण रेखा (LoC) पार करने की बात कही। थरूर इस समय ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश करने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। बीजेपी का कहना है कि थरूर ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत का पक्ष मजबूती से रखा, जिसके चलते कांग्रेस में उनकी आलोचना हो रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता उदित राज ने थरूर पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें तुरंत बीजेपी का “सुपर प्रवक्ता” बना देना चाहिए। इस बयान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया।
यह विवाद केवल थरूर की टिप्पणियों तक सीमित नहीं है। यह भारत की विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, और राजनीतिक दलों के बीच तनाव को दर्शाता है। थरूर ने पनामा में अपने भाषण में कहा कि भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए, जिसमें LoC और अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करना शामिल था। उन्होंने यह भी जोर दिया कि भारत शांति चाहता है, लेकिन आतंकवादियों को उनके कृत्यों की कीमत चुकानी होगी। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी अपने ही नेता को निशाना बना रही है, क्योंकि वह भारत के हित को प्राथमिकता दे रहे हैं। इस बीच, कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि थरूर ने पार्टी लाइन से हटकर केंद्र सरकार का समर्थन किया, जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। यह लेख इस विवाद के हर पहलू को सरल और स्पष्ट भाषा में समझाएगा, ताकि आप इस सियासी ड्रामे की पूरी कहानी जान सकें।
शशि थरूर का अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष?
शशि थरूर, जो एक पूर्व राजनयिक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, इन दिनों भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को वैश्विक मंच पर पेश करने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। यह प्रतिनिधिमंडल ऑपरेशन सिंदूर के बाद बनाया गया, जिसका मकसद दुनिया को भारत की जीरो टॉलरेंस नीति के बारे में बताना है। थरूर की अगुवाई में इस दल में बीजेपी के तेजस्वी सूर्या, झामुमो के सरफराज अहमद, टीडीपी के गंटी हरिश माधुर, और शिवसेना के मिलिंद देवरा जैसे नेता शामिल हैं। पनामा में अपने भाषण में थरूर ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जिक्र किया, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा कि भारत ने आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा जवाब दिया, ताकि उनकी सजा सुनिश्चित हो।
थरूर ने यह भी बताया कि भारत ने पाकिस्तान को कार्रवाई का मौका दिया, लेकिन जब कोई कदम नहीं उठाया गया, तो भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति का समर्थन किया और कहा कि भारत शांति चाहता है, लेकिन आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। उनके इस बयान ने कांग्रेस के कुछ नेताओं को नाराज कर दिया, क्योंकि यह पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग था। उदित राज जैसे नेताओं ने थरूर की आलोचना की और कहा कि वह बीजेपी की तारीफ कर रहे हैं। दूसरी ओर, बीजेपी ने थरूर का समर्थन किया और कहा कि वह देशहित को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह स्थिति थरूर और कांग्रेस के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाती है। क्या थरूर वाकई पार्टी से अलग हो रहे हैं, या यह केवल एक सियासी रणनीति है? इस सवाल का जवाब आगे के घटनाक्रम पर निर्भर करता है।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की आतंकवाद विरोधी नीति
ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति का प्रतीक है। 22 अप्रैल, 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोग मारे गए, भारत ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। इस हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था, क्योंकि आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया था। थरूर ने पनामा में अपने भाषण में कहा कि आतंकियों ने पीड़ितों को उनकी पत्नियों और परिवारों के सामने मारा, जिसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई की। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत ने इस ऑपरेशन के जरिए आतंकियों के खून से पीड़ित महिलाओं के सिंदूर का रंग मिलाया, जो एक मजबूत संदेश था।
इस ऑपरेशन के बाद भारत ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को विभिन्न देशों में भेजा, ताकि दुनिया को भारत की नीति समझाई जा सके। थरूर की अगुवाई वाला प्रतिनिधिमंडल अमेरिका, पनामा, गुयाना, कोलंबिया, और ब्राजील जैसे देशों का दौरा कर रहा है। बीजेपी का कहना है कि यह कदम भारत की एकजुटता और आतंकवाद के खिलाफ मजबूत इरादे को दर्शाता है। हालांकि, कांग्रेस ने इस पहल को “ध्यान भटकाने की रणनीति” करार दिया और कहा कि उनके द्वारा सुझाए गए नामों को नजरअंदाज किया गया। इस बीच, थरूर ने स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रीय हित के लिए काम कर रहे हैं, न कि किसी पार्टी के लिए। उनके इस रुख ने सियासी हलकों में नई बहस छेड़ दी है। क्या यह कदम भारत की विदेश नीति को मजबूत करेगा, या यह केवल एक राजनीतिक ड्रामा है?
कांग्रेस में थरूर की स्थिति: क्या है विवाद की जड़?
शशि थरूर और कांग्रेस के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ महीनों में थरूर ने कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए हैं। चाहे वह ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन हो, विदेश सचिव विक्रम मिस्री की तारीफ हो, या फिर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की सराहना, थरूर ने हमेशा राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा। उदित राज ने थरूर पर तंज कसते हुए कहा कि वह बीजेपी के लिए प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता पी.जे. कुरियन ने कहा कि अगर लोग थरूर को बीजेपी की ओर झुकता हुआ देखते हैं, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस ने थरूर को अपने चार नामों की सूची में शामिल नहीं किया, फिर भी केंद्र सरकार ने उन्हें प्रतिनिधिमंडल का नेता बनाया। इससे पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस पर हमला बोला और कहा कि पार्टी अपने ही “प्रतिभाशाली” नेता को दबा रही है। बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सवाल उठाया कि थरूर की वाक्पटुता और कूटनीतिक अनुभव को देखते हुए, कांग्रेस ने उन्हें क्यों नहीं चुना? यह विवाद अब थरूर के भविष्य पर सवाल उठा रहा है। क्या वह कांग्रेस में रहेंगे, या बीजेपी की ओर रुख करेंगे? यह सवाल हर किसी के दिमाग में है।
बीजेपी का थरूर को समर्थन: रणनीति या सच्चाई?
बीजेपी ने इस पूरे विवाद में शशि थरूर का खुलकर समर्थन किया है। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि थरूर को राहुल गांधी के इशारे पर निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने भारत को पहले रखा, न कि गांधी परिवार को। बीजेपी नेता अजय आलोक ने तो कांग्रेस को “वासेपुर की गैंग” से तुलना कर डाली और कहा कि पार्टी में दो गुट हैं – एक राहुल गांधी का और दूसरा थरूर जैसे “राष्ट्रवादी” नेताओं का। बीजेपी का यह समर्थन कई सवाल उठाता है। क्या यह केवल कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति है, या वाकई बीजेपी थरूर की राष्ट्रीय भावना की तारीफ कर रही है?
थरूर ने भी इस समर्थन को स्वीकार करते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय हित के लिए काम कर रहे हैं, न कि किसी पार्टी के लिए। उनके इस बयान ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी पहले ही इस बात से नाराज थी कि थरूर को सरकार ने प्रतिनिधिमंडल का नेता बनाया, जबकि कांग्रेस ने उनके नाम की सिफारिश नहीं की थी। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाकर कांग्रेस पर “असुरक्षा” और “ईर्ष्या” का आरोप लगाया। यह सियासी ड्रामा न केवल थरूर और कांग्रेस के रिश्तों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि भारत की विदेश नीति और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर भी सवाल उठा रहा है।
उदित राज का तंज: थरूर बीजेपी के प्रवक्ता?
कांग्रेस नेता उदित राज ने शशि थरूर पर तीखा हमला बोला और कहा कि उन्हें तुरंत बीजेपी का “सुपर प्रवक्ता” बना देना चाहिए। उदित राज का यह बयान थरूर की उस टिप्पणी के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक में भारत ने पहली बार LoC पार की थी। उदित राज ने इसे कांग्रेस की ऐतिहासिक विरासत को कमजोर करने वाला बयान बताया। उनके इस तंज ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी। बीजेपी ने तुरंत इस मौके का फायदा उठाया और कहा कि कांग्रेस अपने ही नेता को निशाना बना रही है, क्योंकि वह पाकिस्तान के खिलाफ भारत का पक्ष मजबूती से रख रहे हैं।
उदित राज का बयान केवल थरूर तक सीमित नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि थरूर ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की तारीफ की, जो बीजेपी नेताओं से भी ज्यादा थी। इस बयान ने कांग्रेस के भीतर तनाव को और बढ़ा दिया। कुछ नेताओं का मानना है कि थरूर की यह हरकत पार्टी के लिए नुकसानदेह है। वहीं, थरूर ने स्पष्ट किया कि वह एक भारतीय के तौर पर बोल रहे थे, न कि कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में। इस पूरे विवाद ने एक बार फिर कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और नेतृत्व के सवाल को सामने ला दिया है। क्या उदित राज का यह हमला राहुल गांधी के इशारे पर था, जैसा कि बीजेपी दावा कर रही है? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।
थरूर की कूटनीतिक भूमिका: राष्ट्रीय हित या सियासी खेल?
शशि थरूर की कूटनीतिक पृष्ठभूमि और उनकी वाक्पटुता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष रखने के लिए एक मजबूत उम्मीदवार बनाया है। पूर्व संयुक्त राष्ट्र राजनयिक के तौर पर, थरूर को विदेश नीति और कूटनीति का गहरा अनुभव है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के बाद वैश्विक मंच पर भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने उनके द्वारा सुझाए गए नामों को नजरअंदाज किया और थरूर को मनमाने ढंग से चुना। इससे पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा है।
थरूर ने इस विवाद पर कहा कि वह राष्ट्रीय हित के लिए काम कर रहे हैं, न कि किसी पार्टी के लिए। पनामा, गुयाना, और अमेरिका जैसे देशों में उनके भाषणों ने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती दी है। उन्होंने 9/11 मेमोरियल का दौरा किया और आतंकवाद के खिलाफ भारत की एकजुटता को दोहराया। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगता है कि थरूर का यह रुख पार्टी के खिलाफ है। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाकर थरूर को “राष्ट्रवादी” बताया और कांग्रेस पर हमला बोला। क्या थरूर की यह भूमिका वाकई राष्ट्रीय हित के लिए है, या यह एक सियासी खेल का हिस्सा है?
कांग्रेस का असंतोष: राहुल गांधी और थरूर का तनाव?
कांग्रेस के भीतर शशि थरूर को लेकर असंतोष की जड़ें गहरी हैं। पार्टी ने चार नाम सुझाए थे – आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, राजा बरार, और नसीर हुसैन – लेकिन सरकार ने थरूर को चुना। कांग्रेस का कहना है कि यह कदम पार्टी को कमजोर करने की साजिश है। राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर इस पर आपत्ति जताई थी। बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस थरूर की प्रतिभा से “ईर्ष्या” करती है। बीजेपी के अमित मालवीय ने सवाल उठाया कि आखिर क्यों राहुल गांधी ने थरूर को नामित नहीं किया?
थरूर ने इस विवाद पर कहा कि वह एक भारतीय के तौर पर बोल रहे हैं, न कि कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय संकट के समय वह सरकार का समर्थन करेंगे। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगता है कि थरूर ने “लक्ष्मण रेखा” पार कर दी है। पार्टी ने पहले ही थरूर को चेतावनी दी थी कि केवल राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं के बयान को ही पार्टी का आधिकारिक रुख माना जाए। इस तनाव ने थरूर के कांग्रेस में भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह तनाव पार्टी में फूट का कारण बनेगा?
भारत-पाकिस्तान तनाव: थरूर का सख्त संदेश?
शशि थरूर ने अपने भाषणों में पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया है। गुयाना में उन्होंने कहा, “अगर पाकिस्तान फिर से हमला करेगा, तो उसे और सख्त जवाब मिलेगा।” उन्होंने 2016 के पठानकोट हमले का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने जांच के लिए अपनी टीम भेजी, लेकिन बाद में भारत को ही दोषी ठहराया। थरूर ने यह भी कहा कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने से पहले पाकिस्तान को कार्रवाई का मौका दिया था। जब कोई कदम नहीं उठाया गया, तो भारत ने आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की।
थरूर के इस रुख को बीजेपी ने सराहा, लेकिन कांग्रेस ने इसे पार्टी लाइन से हटकर बताया। थरूर ने स्पष्ट किया कि वह भारत की शांति की नीति में विश्वास करते हैं, लेकिन आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनके इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगता है कि थरूर ने केंद्र सरकार की नीतियों का बहुत ज्यादा समर्थन किया। यह विवाद भारत-पाकिस्तान तनाव के साथ-साथ घरेलू राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है। क्या थरूर का यह रुख भारत की विदेश नीति को नई दिशा देगा?
थरूर का भविष्य: कांग्रेस में रहेंगे या नई राह?
शशि थरूर और कांग्रेस के बीच बढ़ता तनाव अब उनके भविष्य पर सवाल उठा रहा है। पिछले कुछ महीनों में थरूर ने कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए हैं। चाहे वह ऑपरेशन सिंदूर हो, या फिर विदेश सचिव विक्रम मिस्री की तारीफ, थरूर ने हमेशा राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगता है कि वह बीजेपी की ओर झुक रहे हैं। बीजेपी ने भी इस मौके का फायदा उठाकर थरूर को “राष्ट्रवादी” बताया और कांग्रेस पर हमला बोला।
थरूर ने कहा कि वह राष्ट्रीय संकट के समय देश के साथ खड़े हैं, न कि किसी पार्टी के साथ। लेकिन कांग्रेस के भीतर उनकी स्थिति कमजोर होती दिख रही है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि थरूर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि वह कांग्रेस में रहकर अपनी स्थिति मजबूत करेंगे। यह विवाद न केवल थरूर के भविष्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि कांग्रेस की एकता पर भी सवाल उठा रहा है। क्या थरूर नई राह चुनेंगे, या कांग्रेस के साथ अपने रिश्ते सुधारेंगे? यह सवाल आने वाले दिनों में साफ होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. शशि थरूर और कांग्रेस के बीच विवाद की वजह क्या है? शशि थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर और केंद्र सरकार की नीतियों का समर्थन किया, जो कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग था। इससे पार्टी के भीतर तनाव बढ़ा।
2. बीजेपी ने थरूर का समर्थन क्यों किया? बीजेपी का कहना है कि थरूर ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी, जिसके चलते कांग्रेस उन्हें निशाना बना रही है। यह एक सियासी रणनीति भी हो सकती है।
3. ऑपरेशन सिंदूर क्या है? ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई थी, जो 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम हमले के जवाब में शुरू की गई।
4. क्या थरूर कांग्रेस छोड़ सकते हैं? यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनके और कांग्रेस के बीच तनाव ने इस तरह की अटकलों को जन्म दिया है।
निष्कर्ष?
शशि थरूर और कांग्रेस-बीजेपी के बीच चल रहा विवाद भारत की राजनीति में एक नया मोड़ ला रहा है। थरूर की राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने वाली छवि ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत किया है, लेकिन कांग्रेस के भीतर उनकी स्थिति कमजोर हो रही है। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाकर कांग्रेस पर हमला बोला है, जबकि थरूर ने स्पष्ट किया कि वह एक भारतीय के तौर पर बोल रहे हैं। यह विवाद न केवल थरूर के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत की आतंकवाद विरोधी नीति और राजनीतिक एकता पर भी असर डालेगा। क्या यह सियासी ड्रामा नई दिशा लेगा, या यह केवल एक अस्थायी तूफान है? यह समय ही बताएगा।