14 जून 2025 को इजरायल और ईरान के बीच तनाव ने युद्ध का रूप ले लिया। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल ने 13 जून को ईरान के न्यूक्लियर और मिलिट्री ठिकानों पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया, जिसमें दर्जनों टारगेट्स को निशाना बनाया गया। जवाब में, ईरान ने 14 जून को तेल अवीव और यरुशलम पर मिसाइलें दागीं, जिससे दोनों देशों में हड़कंप मच गया। रॉयटर्स ने बताया कि ईरान की मिसाइलों से इजरायल में दो लोग मारे गए, जबकि ईरान में 78 लोग, ज्यादातर सिविलियन, हताहत हुए। X पर @manniefabian ने लिखा, “तेहरान के मेहराबाद एयरपोर्ट पर आग लगी।” इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे “युद्ध की शुरुआत” बताया, जबकि ईरान ने इसे “युद्ध की घोषणा” करार दिया। इस हमले ने न सिर्फ मिडिल ईस्ट, बल्कि पूरी दुनिया को टेंशन में डाल दिया। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, IAEA के डायरेक्टर राफेल ग्रॉसी ने पुष्टि की कि इजरायल के हमले से ईरान के नतांज न्यूक्लियर साइट पर रेडियोलॉजिकल और केमिकल कंटामिनेशन हुआ। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोनों देशों के मंत्रियों से बात की, और पीएम मोदी ने शांति की अपील की। यह लेख इस युद्ध की पूरी कहानी, इसके कारण, और भारत पर असर को आसान भाषा में समझाएगा।
इजरायल का हमला: ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर स्ट्राइक?
इजरायल ने 13 जून 2025 को ईरान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला। द गार्जियन की खबर के मुताबिक, इजरायल ने 100 से ज्यादा टारगेट्स, जिनमें न्यूक्लियर साइट्स, बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियां, और सैन्य कमांडरों के ठिकाने शामिल थे, को निशाना बनाया। बीबीसी ने बताया कि यह “ऑपरेशन राइजिंग लायन” का हिस्सा था, जिसे इजरायल ने ईरान को न्यूक्लियर हथियार बनाने से रोकने के लिए शुरू किया। हिंदुस्तान टाइम्स ने IAEA के हवाले से कहा कि नतांज न्यूक्लियर साइट पर कंटामिनेशन हुआ, जिससे पर्यावरण और हेल्थ रिस्क बढ़ गया। X पर @manniefabian ने शेयर किया कि इजरायल ने पहले से तैनात ड्रोन्स और वॉरप्लेन्स का इस्तेमाल किया। इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज ने इसे “प्री-इम्प्टिव स्ट्राइक” बताया। रॉयटर्स के अनुसार, इस हमले में ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के टॉप कमांडर होसैन सलामी समेत कई सैन्य अधिकारी मारे गए। ईरान ने इसे “संप्रभुता का उल्लंघन” बताया और जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी। इस हमले ने मिडिल ईस्ट में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया, और दुनिया भर के देशों ने शांति की अपील शुरू कर दी। यह सवाल उठता है कि क्या यह हमला जरूरी था, या इससे और अस्थिरता बढ़ेगी?
ईरान का पलटवार: तेल अवीव और यरुशलम में मिसाइलें?
ईरान ने इजरायल के हमले का जवाब देने में देर नहीं की। फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 जून की सुबह ईरान ने तेल अवीव और यरुशलम पर दर्जनों बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। सीएनएन ने बताया कि तेल अवीव में एक मिसाइल रिहायशी इमारत से टकराई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई। X पर @manniefabian ने लिखा, “कम से कम 10 लोग घायल हुए।” द गार्जियन के अनुसार, इजरायल की मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने कई मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया, लेकिन कुछ मिसाइलें टारगेट तक पहुंच गईं। ईरान की न्यूज एजेंसी नूर न्यूज ने दावा किया कि यह “न्यूक्लियर साइट्स पर हमले का जवाब” था। रॉयटर्स ने बताया कि ईरान में 78 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर सिविलियन थे। तेहरान के मेहराबाद एयरपोर्ट पर आग लगने की खबरें भी आईं। ईरान ने चेतावनी दी कि अगर इजरायल ने फिर हमला किया, तो जवाब और सख्त होगा। इस पलटवार ने दोनों देशों के बीच युद्ध को और भड़का दिया, और मिडिल ईस्ट में अस्थिरता का खतरा बढ़ गया। यह सिचुएशन हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह जवाबी हमला जरूरी था, या इससे सिर्फ नुकसान बढ़ेगा?
भारत की चिंता: तेल की सप्लाई और इकॉनमी पर खतरा?
इस युद्ध का असर भारत पर भी पड़ रहा है। द हिंदू की खबर के मुताबिक, इजरायल-ईरान तनाव से भारत की ऑयल सप्लाई पर खतरा मंडरा रहा है, और एक्सपोर्ट कॉस्ट में 40-50% की बढ़ोतरी हो सकती है। भारत अपनी 80% से ज्यादा ऑयल जरूरतें मिडिल ईस्ट से पूरी करता है, और ईरान भारत का बड़ा ऑयल सप्लायर है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने बताया कि तेल की कीमतों में उछाल से भारत में पेट्रोल-डीजल और जरूरी चीजों के दाम बढ़ सकते हैं। X पर @narendramodi ने लिखा, “मैंने नेतन्याहू से बात की और शांति की जरूरत पर जोर दिया।” विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ईरान और इजरायल के विदेश मंत्रियों से बात की, ताकि तनाव कम हो। इंडिगो एयरलाइंस ने X पर लिखा कि ईरान के एयरस्पेस में दिक्कतों की वजह से फ्लाइट्स में देरी हो सकती है। यह युद्ध भारत की इकॉनमी और डिप्लोमेसी के लिए बड़ा चैलेंज है, क्योंकि भारत के दोनों देशों से रणनीतिक रिश्ते हैं। यह सवाल उठता है कि भारत इस सिचुएशन में न्यूट्रल रहकर अपनी जरूरतें कैसे पूरी करेगा?
दुनिया की प्रतिक्रिया: शांति की अपील?
इस युद्ध ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। द हिंदू के मुताबिक, रूस ने इजरायल के हमले को “अवैध” बताया और कहा कि यह UN चार्टर का उल्लंघन है। चीन ने भी इजरायल की निंदा की और कहा कि वह तनाव कम करने में मदद करेगा। द गार्जियन ने IAEA चीफ राफेल ग्रॉसी के हवाले से कहा, “न्यूक्लियर साइट्स पर हमले कभी नहीं होने चाहिए।” यूरोपियन लीडर्स, जैसे यूके के पीएम कीर स्टारमर और जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिच मर्ज, ने डिप्लोमेसी की वकालत की। रॉयटर्स ने बताया कि अमेरिका ने कहा कि वह इस हमले में शामिल नहीं था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “शानदार” बताया। X पर @CNNnews18 ने लिखा, “किंग चार्ल्स ने पीड़ितों के लिए प्रार्थना की।” यह प्रतिक्रियाएं दिखाती हैं कि दुनिया इस युद्ध को और बढ़ने से रोकना चाहती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या डिप्लोमेसी इस तनाव को कम कर पाएगी, या यह युद्ध और फैलेगा? यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि वैश्विक शांति के लिए एकजुटता कितनी जरूरी है।
न्यूक्लियर खतरा: नतांज साइट का कंटामिनेशन?
ईरान की नतांज न्यूक्लियर साइट पर हुआ कंटामिनेशन इस युद्ध का सबसे खतरनाक पहलू है। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, IAEA के डायरेक्टर राफेल ग्रॉसी ने पुष्टि की कि इजरायल के हमले से रेडियोलॉजिकल और केमिकल कंटामिनेशन हुआ। बीबीसी ने बताया कि यह साइट ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम का केंद्र है, और इजरायल का दावा है कि ईरान न्यूक्लियर हथियार बना रहा था। द हिंदू ने लिखा कि 2015 के न्यूक्लियर डील को इजरायल ने हमेशा विरोध किया, और 2020 में ईरानी वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या भी इजरायल ने की थी। X पर @manniefabian ने शेयर किया कि इस हमले में 24 से ज्यादा न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स मारे गए। ईरान ने दावा किया कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम शांतिपूर्ण है, लेकिन इस हमले ने उसकी क्षमता को बड़ा झटका दिया। यह कंटामिनेशन न सिर्फ ईरान, बल्कि पूरे मिडिल ईस्ट के लिए पर्यावरण और हेल्थ रिस्क है। यह सवाल उठता है कि क्या न्यूक्लियर साइट्स पर हमले जायज हैं, या इससे और बड़ा खतरा पैदा होगा?
नेतन्याहू का बयान: यह सिर्फ शुरुआत?
इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले को “युद्ध की शुरुआत” बताया। द गार्जियन के मुताबिक, नेतन्याहू ने कहा कि यह हमला ईरान को न्यूक्लियर हथियार बनाने से रोकने के लिए जरूरी था। रॉयटर्स ने बताया कि नेतन्याहू ने पीएम मोदी समेत कई विश्व नेताओं से बात की, ताकि इजरायल को सपोर्ट मिले। X पर @narendramodi ने लिखा, “नेतन्याहू ने मुझे सिचुएशन की जानकारी दी।” नेतन्याहू ने यह भी कहा कि यह ऑपरेशन दो हफ्ते तक चल सकता है। बीबीसी ने लिखा कि इजरायल ने अपनी डिप्लोमैटिक मिशन्स बंद कर दिए और सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखा। इस बयान ने ईरान को और भड़काया, जिसने जवाबी हमले तेज कर दिए। नेतन्याहू का यह स्टैंड इजरायल की सख्त पॉलिसी को दिखाता है, लेकिन यह मिडिल ईस्ट में और अस्थिरता ला सकता है। यह सवाल उठता है कि क्या नेतन्याहू का यह रुख सही है, या इससे युद्ध और लंबा खिंचेगा? यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि लीडर्स के बयान कितने असरदार हो सकते हैं।
ईरान का दुख: सिविलियन्स की मौत?
ईरान में इजरायल के हमले ने सिविलियन्स को भारी नुकसान पहुंचाया। रॉयटर्स के मुताबिक, 78 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने बताया कि तेहरान में रिहायशी इमारतें तबाह हुईं, और मेहराबाद एयरपोर्ट पर आग लग गई। X पर @manniefabian ने शेयर किया कि एक मां और बच्चा मलबे में दब गए। ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने अपने टॉप कमांडर होसैन सलामी की मौत की पुष्टि की। द हिंदू ने लिखा कि ईरान ने इसे “युद्ध की घोषणा” बताया और बदला लेने की कसम खाई। सिविलियन्स की मौत ने ईरान में गुस्सा भड़का दिया, और तेहरान के एन्केलाब स्क्वायर में लोग विरोध में जमा हुए। यह दुख न सिर्फ ईरान का है, बल्कि हर उस इंसान का, जो युद्ध का दर्द समझता है। यह सवाल उठता है कि क्या सिविलियन्स को निशाना बनाना जायज है, या यह सिर्फ युद्ध को और भयानक बनाता है? यह हमें युद्ध के इंसानी नुकसान को समझने की जरूरत बताता है।
अमेरिका की भूमिका: ट्रंप का बयान?
अमेरिका ने इस युद्ध में न्यूट्रल रहने की कोशिश की, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने हलचल मचा दी। द गार्जियन के मुताबिक, ट्रंप ने इजरायल के हमले को “शानदार” बताया और कहा कि अगर ईरान नहीं माना, तो और सख्त हमले होंगे। बीबीसी ने बताया कि यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्को रुबियो ने कहा कि यह हमला “यूनिलैटरल” था, और अमेरिका इसमें शामिल नहीं था। X पर @CNNnews18 ने लिखा, “ट्रंप की टिप्पणी ने अमेरिका की पॉलिसी पर सवाल उठाए।” रॉयटर्स ने बताया कि ट्रंप की सलाहकार टीम, जिसमें जेडी वैंस शामिल हैं, नए युद्ध में पड़ने से बचना चाहती है। यह बयान इजरायल को सपोर्ट करता दिखता है, लेकिन अमेरिका को भी रिस्क में डाल सकता है। यह सवाल उठता है कि क्या ट्रंप का यह बयान डिप्लोमेसी को नुकसान पहुंचाएगा, या यह ईरान पर दबाव बनाएगा? यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि सुपरपावर की भूमिका कितनी अहम होती है।
भविष्य का खतरा: क्या युद्ध रुकेगा?
यह युद्ध मिडिल ईस्ट और दुनिया के लिए बड़ा खतरा है। द हिंदू के मुताबिक, यूरोपियन लीडर्स ने डिप्लोमेसी की वकालत की, और भारत ने शांति की अपील की। बीबीसी ने लिखा कि अगर ईरान ने अमेरिकी बेस पर हमला किया, तो यह युद्ध और फैल सकता है। X पर @manniefabian ने शेयर किया कि इजरायल ने 50,000 सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखा है। रॉयटर्स ने बताया कि ईरान की प्रॉक्सी फोर्सेस, जैसे हिजबुल्लाह, भी एक्टिव हो सकती हैं। यह सिचुएशन न सिर्फ मिडिल ईस्ट, बल्कि भारत जैसे देशों की इकॉनमी और सिक्योरिटी को भी प्रभावित कर सकती है। यह सवाल उठता है कि क्या यह युद्ध रुकेगा, या यह और बड़ा रूप लेगा? यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि शांति के लिए क्या कदम उठाने चाहिए। यह युद्ध हमें सिखाता है कि डिप्लोमेसी और संवाद ही इंसानियत को बचा सकते हैं।