जापान का रेजिलिएंस मून लैंडर: क्या हुआ चांद पर लैंडिंग के साथ?

WhatsApp
Telegram
Facebook
Twitter
LinkedIn

जापान की निजी अंतरिक्ष कंपनी, ispace, ने हाल ही में अपने रेजिलिएंस मून लैंडर के जरिए चांद पर उतरने की कोशिश की। यह मिशन 6 जून 2025 को सुबह 4:17 बजे जापान समय के अनुसार चांद के उत्तरी हिस्से, मारे फ्रिगोरिस (जिसे “Sea of Cold” भी कहते हैं) में लैंड करने वाला था। लेकिन लैंडिंग के समय से कुछ ही मिनट पहले, लैंडर से संपर्क टूट गया, और कंपनी अब तक यह पुष्टि नहीं कर पाई कि लैंडिंग सफल हुई या नहीं। यह ispace का दूसरा प्रयास था, क्योंकि 2023 में उनका पहला मिशन, हकुटो-आर, भी असफल रहा था। उस समय सॉफ्टवेयर में गलती के कारण लैंडर चांद की सतह पर क्रैश हो गया था। इस बार, ispace ने नई तकनीक और बेहतर सॉफ्टवेयर के साथ कोशिश की, लेकिन फिर भी नतीजा अनिश्चित है। इस मिशन का महत्व इसलिए भी ज्यादा था क्योंकि सफल होने पर यह जापान की पहली निजी कंपनी होती जो चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करती। यह मिशन न केवल जापान के लिए, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकता था। इस लेख में, हम इस मिशन के हर पहलू को समझेंगे, इसकी चुनौतियों, तकनीकी खामियों, और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि यह मिशन निजी अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकता है।

ispace का मिशन: चांद पर निजी लैंडिंग की कोशिश?

ispace एक टोक्यो-आधारित कंपनी है जो चांद पर निजी अंतरिक्ष मिशन को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। कंपनी का लक्ष्य है कि वह चांद पर एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनाए, जिसे वे “मून वैली” कहते हैं। इस मिशन में रेजिलिएंस लैंडर को चांद पर उतारना था, जो एक छोटा रोवर, टेनेशियस, और कई वैज्ञानिक उपकरण ले जा रहा था। यह लैंडर 15 जनवरी 2025 को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च हुआ था और महीनों तक कम-ऊर्जा कक्षा में चांद की ओर बढ़ा। इस रणनीति का मकसद ईंधन बचाना था, लेकिन इससे मिशन का समय लंबा हो गया। लैंडिंग से पहले, लैंडर ने चांद की 100 किलोमीटर ऊंची कक्षा में प्रवेश किया और फिर धीरे-धीरे उतरना शुरू किया। लेकिन लैंडिंग के आखिरी पलों में, लेजर रेंजफाइंडर (जो सतह से दूरी नापने का उपकरण है) ने सही डेटा नहीं दिया, जिसके कारण लैंडर की गति को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। इस तकनीकी खामी ने मिशन को खतरे में डाल दिया। ispace के इंजीनियर अब भी लैंडर से संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन शुरुआती संकेतों से लगता है कि लैंडर ने चांद पर “हार्ड लैंडिंग” की, यानी क्रैश कर गया। यह असफलता न केवल ispace के लिए, बल्कि निजी अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में काम करने वाली अन्य कंपनियों के लिए भी एक सबक है।

रेजिलिएंस लैंडर: डिजाइन और तकनीक?

रेजिलिएंस लैंडर को ispace ने हकुटो-आर मिशन 1 के अनुभवों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया था। यह लैंडर 2.3 मीटर ऊंचा और पूरी तरह से ईंधन के साथ लगभग 1000 किलोग्राम वजन का था। इसका डिजाइन हल्का और लागत-प्रभावी था, जिससे यह अन्य प्रतिस्पर्धी लैंडरों की तुलना में सस्ता था। लैंडर में सौर ऊर्जा से चलने वाले पैनल थे, जो इसे चांद पर 14 दिन (एक चंद्र दिवस) तक काम करने की क्षमता देते थे। इसके साथ ही, लैंडर में एक छोटा रोवर, टेनेशियस, भी था, जिसे ispace की लक्जमबर्ग शाखा ने बनाया था। यह रोवर केवल 11 पाउंड वजन का था और इसमें एक हाई-डेफिनिशन कैमरा और एक फावड़ा था, जिसका काम चांद की मिट्टी (रेगोलिथ) को इकट्ठा करना और तस्वीरें लेना था। इसके अलावा, लैंडर में छह वैज्ञानिक उपकरण थे, जिनमें जापानी कंपनी यूजलीना कंपनी का एक प्रयोग शामिल था, जो चांद पर शैवाल-आधारित खाद्य उत्पादन की जांच करता। इन उपकरणों की कुल कीमत 16 मिलियन डॉलर थी। लैंडर का लक्ष्य था कि वह नासा के लिए चांद की मिट्टी इकट्ठा करे, जो दुनिया का पहला वाणिज्यिक चंद्र संसाधन लेनदेन होता। लेकिन तकनीकी खामियों ने इस मिशन को जोखिम में डाल दिया।

मारे फ्रिगोरिस: चांद का अनोखा क्षेत्र?

मारे फ्रिगोरिस, जिसे “Sea of Cold” भी कहते हैं, चांद का एक अनोखा और कम खोजा गया क्षेत्र है। यह चांद के उत्तरी गोलार्ध में, उत्तर ध्रुव से लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ispace ने इस क्षेत्र को इसलिए चुना क्योंकि यह अपेक्षाकृत सपाट और कम जोखिम वाला है। 2023 में हुए पहले मिशन में, ispace ने एटलस क्रेटर को चुना था, जो ऊबड़-खाबड़ था और लैंडिंग के दौरान मुश्किलें पैदा हुई थीं। मारे फ्रिगोरिस में कम बोल्डर और प्राचीन लावा प्रवाह हैं, जो इसे लैंडिंग के लिए आदर्श बनाते हैं। साथ ही, इस क्षेत्र में लंबे समय तक सूरज की रोशनी उपलब्ध रहती है, जो सौर ऊर्जा से चलने वाले लैंडर के लिए जरूरी है। इसके अलावा, इस क्षेत्र से पृथ्वी के साथ निर्बाध संचार संभव है, जो मिशन के लिए महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां की सतह विभिन्न चंद्र युगों की सामग्री को दर्शाती है। अगर रेजिलिएंस सफलतापूर्वक लैंड करता, तो यह चांद के इस हिस्से की वैज्ञानिक खोज में बड़ा योगदान देता।

2023 का असफल मिशन: क्या गलत हुआ?

2023 में ispace का पहला मिशन, हकुटो-आर मिशन 1, चांद पर लैंड करने में असफल रहा था। उस समय लैंडर ने एटलस क्रेटर को निशाना बनाया था, जो 54 मील चौड़ा और ऊबड़-खाबड़ था। लैंडिंग के दौरान, लैंडर का सॉफ्टवेयर गलत तरीके से ऊंचाई का डेटा पढ़ने में विफल रहा। सॉफ्टवेयर ने गलती से यह मान लिया कि लैंडर चांद की सतह के करीब है, जबकि वह वास्तव में क्रेटर के दो मील ऊंचे किनारे के ऊपर था। इस गलती के कारण लैंडर का ईंधन खत्म हो गया, और वह अनियंत्रित ढंग से चांद की सतह पर क्रैश हो गया। इस असफलता ने ispace को कई सबक सिखाए, जिन्हें उन्होंने रेजिलिएंस मिशन में लागू करने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, इस बार उन्होंने सॉफ्टवेयर को अपडेट किया और एक सपाट लैंडिंग साइट चुनी। लेकिन फिर भी, लेजर रेंजफाइंडर की खराबी ने मिशन को प्रभावित किया। यह दिखाता है कि चांद पर लैंडिंग कितनी जटिल और जोखिम भरी प्रक्रिया है, खासकर निजी कंपनियों के लिए जो सीमित बजट पर काम करती हैं।

तकनीकी चुनौतियां: लेजर रेंजफाइंडर की खराबी?

रेजिलिएंस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती थी इसके लेजर रेंजफाइंडर की खराबी। यह उपकरण लैंडर और चांद की सतह के बीच की दूरी को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया था। लैंडिंग के दौरान, लैंडर को 380 किमी/घंटा से 120 किमी/घंटा की गति तक धीमा करना था, और इसके लिए सटीक दूरी का डेटा जरूरी था। लेकिन ispace ने बताया कि लेजर रेंजफाइंडर ने सही माप नहीं दिए, जिसके कारण लैंडर पर्याप्त रूप से धीमा नहीं हो सका। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या लैंडर बहुत तेजी से नीचे आ रहा था, या रेंजफाइंडर की देरी ने गलत डेटा दिया। इस तकनीकी खामी ने मिशन की सफलता को खतरे में डाल दिया। ispace अब इस डेटा का विश्लेषण कर रहा है ताकि भविष्य के मिशनों में ऐसी गलतियों से बचा जा सके। यह घटना निजी अंतरिक्ष कंपनियों के सामने आने वाली जटिलताओं को दर्शाती है, जहां छोटी सी गलती भी पूरे मिशन को असफल कर सकती है।

टेनेशियस रोवर: चांद की सतह का अन्वेषण?

टेनेशियस रोवर, जिसे ispace की लक्जमबर्ग शाखा ने बनाया, इस मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह छोटा, 11 पाउंड का रोवर चांद की सतह पर धीमी गति (एक इंच प्रति सेकंड से भी कम) से गोलाकार चक्कर लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इसका मुख्य काम था चांद की मिट्टी (रेगोलिथ) को इकट्ठा करना और हाई-डेफिनिशन कैमरे से तस्वीरें लेना। यह रोवर नासा के लिए रेगोलिथ इकट्ठा करने वाला था, जिसे बाद में एक वाणिज्यिक लेनदेन के तहत नासा को सौंपा जाता। इसके अलावा, रोवर में एक कला प्रदर्शन, “मूनहाउस,” और यूनेस्को का एक मेमोरी डिस्क भी था, जो भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करता था। अगर लैंडिंग सफल होती, तो टेनेशियस चांद पर एक किलोमीटर तक का क्षेत्र खोजता। लेकिन लैंडर के क्रैश होने की संभावना के कारण, रोवर का मिशन भी खतरे में पड़ गया। यह रोवर निजी अंतरिक्ष मिशनों में छोटे लेकिन प्रभावी उपकरणों की क्षमता को दर्शाता है।

निजी अंतरिक्ष अन्वेषण: वैश्विक दौड़?

निजी अंतरिक्ष अन्वेषण की दौड़ में ispace अकेली कंपनी नहीं है। हाल के वर्षों में, कई निजी कंपनियों ने चांद पर लैंडिंग की कोशिश की है, लेकिन सफलता कुछ ही को मिली है। उदाहरण के लिए, टेक्सास की कंपनी इंट्यूटिव मशीन्स ने 2024 में अपने ओडिसी लैंडर को चांद पर उतारा, लेकिन वह लैंडिंग के दौरान उलट गया। फायरफ्लाय एयरोस्पेस की ब्लू घोस्ट लैंडर ने मार्च 2025 में सफलतापूर्वक लैंडिंग की, जो पहली निजी रोबोटिक लैंडर थी जो सीधे खड़ी रही। इसके अलावा, भारत की चंद्रयान-3, जापान की SLIM, और चीन की चांग’ए 6 जैसी राष्ट्रीय मिशनों ने भी चांद पर सफल लैंडिंग की है। लेकिन निजी क्षेत्र में असफलताएं ज्यादा रही हैं। ispace की यह दूसरी असफलता निजी कंपनियों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है, जैसे कि सीमित बजट, जटिल तकनीक, और कठिन परिस्थितियां। फिर भी, ये असफलताएं भविष्य के मिशनों के लिए सीख का मौका देती हैं।

ispace की भविष्य की योजनाएं?

ispace ने इस असफलता के बावजूद हार नहीं मानी है। कंपनी पहले से ही अपने तीसरे मिशन, एपेक्स 1.0, की तैयारी कर रही है, जिसे अमेरिकी कंपनी ड्रेपर के साथ मिलकर विकसित किया जा रहा है। यह लैंडर नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम का हिस्सा होगा और चांद के दूरवर्ती हिस्से में वैज्ञानिक प्रयोग ले जाएगा। ispace के सीईओ, ताकेशी हाकामदा, का मानना है कि 2040 तक चांद पर मानव बस्तियां बन सकती हैं। कंपनी की योजना है कि 2027 से वह हर साल दो से तीन मिशन लॉन्च करे। इसके लिए उनके पास पहले से ही फंडिंग सुरक्षित है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए, बल्कि चांद पर संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, चांद की मिट्टी से ऑक्सीजन और अन्य संसाधन निकालने की तकनीक भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा को आसान बना सकती है। ispace की यह महत्वाकांक्षा दिखाती है कि निजी कंपनियां अंतरिक्ष अन्वेषण में क्रांति ला सकती हैं।

नासा और निजी कंपनियों का सहयोग?

नासा ने हाल के वर्षों में निजी कंपनियों के साथ मिलकर चांद पर मिशन भेजने की रणनीति अपनाई है। इसका हिस्सा है नासा का CLPS (कमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज) प्रोग्राम, जिसके तहत निजी कंपनियां जैसे ispace, इंट्यूटिव मशीन्स, और फायरफ्लाय एयरोस्पेस चांद पर वैज्ञानिक उपकरण भेज रही हैं। ispace ने 2020 में नासा के साथ एक अनुबंध साइन किया था, जिसके तहत वह चांद की मिट्टी इकट्ठा करके नासा को सौंपने वाली थी। यह अनुबंध चंद्र संसाधनों का पहला व्यावसायिक लेनदेन होता। लेकिन रेजिलिएंस की संभावित असफलता ने इस योजना पर सवाल उठाए हैं। नासा अब शायद ispace के साथ अपने भविष्य के सहयोग पर पुनर्विचार करे, खासकर ड्रेपर के साथ मिलकर बनाए जा रहे एपेक्स 1.0 मिशन के लिए। फिर भी, नासा का यह दृष्टिकोण कि निजी कंपनियां कम लागत में चांद पर मिशन भेज सकती हैं, अंतरिक्ष अन्वेषण को और सुलभ बना रहा है।

priyansh  के बारे में
For Feedback - golun3625@gmail.com