कश्मीर मुद्दा: ट्रंप की मध्यस्थता के प्रस्ताव पर पाकिस्तान खुश, भारत ने क्यों ठुकराया?

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India Pakistan on Kashmir

11 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की। पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया और कहा कि कश्मीर एक “पुराना मुद्दा” है, जिसका समाधान संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत होना चाहिए। लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि कश्मीर उसका अभिन्न हिस्सा है और वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं चाहता। भारत का कहना है कि बातचीत सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) की वापसी और आतंकियों को सौंपने पर हो सकती है। यह विवाद उस सीजफायर के बाद शुरू हुआ, जिसे ट्रंप ने 10 मई को अमेरिका की मध्यस्थता से हुआ बताया, लेकिन पाकिस्तान ने कुछ ही घंटों बाद इसे तोड़ दिया। आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि यह मामला क्या है और भारत का रुख इतना सख्त क्यों है।

पहलगाम हमला: तनाव की शुरुआत?

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने बाइसरण घाटी में हमला किया, जिसमें 25 भारतीय और एक नेपाली पर्यटक शहीद हुए। इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली, जिसके तार लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हैं। खुफिया जानकारी के मुताबिक, यह साजिश पाकिस्तान में रची गई थी। इस हमले ने देश को गुस्से से भर दिया, और सरकार ने कड़ी कार्रवाई का वादा किया।

7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और PoK के 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया। इस ऑपरेशन का नाम पहलगाम की विधवाओं के सम्मान में रखा गया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया कि यह कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ थी, न कि पाकिस्तान के नागरिकों या सेना के खिलाफ। [पहलगाम हमले की पूरी कहानी] पढ़ें।

India Pakistan conflict

ऑपरेशन सिंदूर: भारत की ताकत?

ऑपरेशन सिंदूर 7 मई की रात 1:05 से 1:30 बजे के बीच हुआ। भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना ने मिलकर पाकिस्तान के बहावलपुर, मुरिदके, और PoK के मुजफ्फराबाद जैसे इलाकों में आतंकी ठिकानों को तबाह किया। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए, जिनमें लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद के बड़े सरगना शामिल थे। भारत ने राफेल जेट्स और स्कैल्प मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जिसे दुनिया ने देखा।

इस ऑपरेशन ने भारत की ताकत और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को दिखाया। लेकिन पाकिस्तान ने जवाबी गोलाबारी शुरू की, जिससे तनाव बढ़ गया। [ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी] पढ़ें।

सीजफायर: ट्रंप का दावा और उल्लंघन?

10 मई को ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान ने सीजफायर पर सहमति जताई। उन्होंने कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला है, और मैं दोनों देशों के साथ कश्मीर मुद्दे पर काम करूंगा।” विक्रम मिसरी ने बताया कि पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारतीय डीजीएमओ से दोपहर 3:35 बजे बात की, और दोनों पक्षों ने शाम 5 बजे से सैन्य कार्रवाई रोकने का वादा किया।

लेकिन कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान ने पुंछ, राजौरी, और कुपवाड़ा में गोलाबारी शुरू कर दी। मिसरी ने रात को बयान दिया, “पाकिस्तान ने समझौते का उल्लंघन किया। हमारी सेना इसका जवाब दे रही है।” इस उल्लंघन में एक सैनिक और 12 नागरिक मारे गए। भारत ने इसे “निंदनीय” बताया और पाकिस्तान से जिम्मेदारी लेने को कहा। [सीजफायर उल्लंघन की खबर] पढ़ें।

ट्रंप की मध्यस्थता: पाकिस्तान क्यों खुश?

ट्रंप की मध्यस्थता: पाकिस्तान क्यों खुश?

पाकिस्तान ने ट्रंप के मध्यस्थता प्रस्ताव को “सकारात्मक” बताया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने कहा, “कश्मीर एक पुराना मुद्दा है, जो दक्षिण एशिया की शांति के लिए खतरा है। इसका समाधान संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों और कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के तहत होना चाहिए।” पाकिस्तान ने अमेरिका के सीजफायर प्रयासों की भी तारीफ की और व्यापार व आर्थिक सहयोग बढ़ाने की बात कही।

पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने ट्रंप को “वैश्विक शांति के लिए प्रेरक” बताया। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान मध्यस्थता के जरिए कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाना चाहता है, जो भारत को मंजूर नहीं।

भारत का रुख: कश्मीर पर कोई मध्यस्थता नहीं?

भारत ने ट्रंप के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। सरकारी सूत्रों ने कहा, “कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। बातचीत का सिर्फ एक मुद्दा है—PoK की वापसी और आतंकियों को सौंपना। हम किसी मध्यस्थता को नहीं मानते।” भारत ने 1972 के सिमला समझौते का हवाला दिया, जिसमें दोनों देशों ने द्विपक्षीय समाधान पर सहमति जताई थी।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ट्रंप की “हजार साल पुराना विवाद” वाली बात पर तंज कसा। उन्होंने कहा, “कश्मीर का विवाद 1947 में शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने हमला किया। ट्रंप को इतिहास पढ़ने की जरूरत है।” RJD सांसद मनोज झा ने ट्रंप को “नया सरपंच” कहकर सवाल उठाया कि उन्हें कश्मीर पर बोलने का क्या हक है।

कश्मीर का इतिहास: 1947 से अब तक?

कश्मीर का इतिहास: 1947 से अब तक?

कश्मीर का विवाद 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे से शुरू हुआ। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पहले तटस्थ रहने का फैसला किया, लेकिन पाकिस्तानी हमले के बाद उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पारित किया, जिसमें कश्मीरियों को जनमत संग्रह का अधिकार देने की बात थी, लेकिन भारत इसे लागू करने के लिए शर्तें मानता है, जो पूरी नहीं हुईं।

1965 और 1971 की जंगों के बाद 1972 में सिमला समझौता हुआ, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा माना। 2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति (अनुच्छेद 370) खत्म कर दी, जिससे तनाव बढ़ा!

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