WHO की नई सिफारिश: शिशुओं को RSV से बचाने के लिए मातृ टीके और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में शिशुओं को रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (RSV) से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण सिफारिश जारी की है। RSV एक आम वायरस है जो शिशुओं और छोटे बच्चों में गंभीर श्वसन संबंधी समस्याएं, जैसे निमोनिया और ब्रोंकियोलाइटिस, पैदा कर सकता है। WHO के अनुसार, यह वायरस हर साल दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में लगभग 1 लाख मौतें और 36 लाख से अधिक अस्पताल में भर्ती होने का कारण बनता है। यह आंकड़े बताते हैं कि RSV शिशुओं के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, खासकर उन बच्चों के लिए जो दो महीने से कम उम्र के हैं।

WHO ने अपनी पहली स्थिति पत्र (position paper) में मातृ टीके (RSVpreF) और लंबे समय तक प्रभावी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (nirsevimab) के उपयोग की सिफारिश की है। ये दोनों उपाय शिशुओं को जन्म से लेकर उनके पहले कुछ महीनों तक RSV से सुरक्षा प्रदान करते हैं। मातृ टीका गर्भवती महिलाओं को उनकी तीसरी तिमाही में दिया जाता है, जो उनके नवजात शिशु को जन्म के बाद सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं, nirsevimab एक इंजेक्शन के रूप में शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद या RSV सीजन से पहले दिया जा सकता है। यह सिफारिश सितंबर 2024 में WHO के विशेषज्ञों के समूह (SAGE) द्वारा की गई थी और मार्च 2025 में RSVpreF टीके को WHO की प्रीक्वालिफिकेशन मिली, जिससे इसे संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है।

यह सिफारिश क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि RSV से होने वाली बीमारियां शिशुओं के लिए जानलेवा हो सकती हैं, खासकर उन देशों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं। भारत जैसे देशों में, जहां नवजात शिशुओं की संख्या अधिक है, इस तरह के टीके और उपचार स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ को कम कर सकते हैं। माता-पिता के लिए यह जानना जरूरी है कि ये उपाय उनके बच्चों को गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं। इस लेख में, हम RSV, इसके खतरों, और WHO की सिफारिशों के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

RSV क्या है और यह शिशुओं के लिए क्यों खतरनाक है?

RSV यानी रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस एक सामान्य श्वसन वायरस है जो फेफड़ों और श्वसन मार्ग को प्रभावित करता है। यह वायरस हर साल ठंड के मौसम में, खासकर शुरुआती सर्दियों में, अधिक सक्रिय होता है। ज्यादातर लोग जो RSV से संक्रमित होते हैं, उन्हें हल्की सर्दी-जुकाम जैसी शिकायतें होती हैं, जैसे नाक बहना, खांसी, और बुखार। लेकिन शिशुओं, खासकर दो महीने से कम उम्र के बच्चों, और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों के लिए यह वायरस गंभीर हो सकता है।

WHO के आंकड़ों के अनुसार, RSV दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में श्वसन संबंधी गंभीर बीमारियों का प्रमुख कारण है। यह निमोनिया और ब्रोंकियोलाइटिस जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है, जो शिशुओं के लिए जानलेवा हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, नवजात शिशुओं के फेफड़े अभी पूरी तरह विकसित नहीं होते, जिसके कारण वे इस वायरस से लड़ने में कमजोर होते हैं। अगर समय पर इलाज न मिले, तो RSV से ग्रसित शिशु को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है, और कुछ मामलों में यह मौत का कारण भी बन सकता है।

भारत में, जहां लाखों बच्चे हर साल जन्म लेते हैं, RSV एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और जागरूकता की कमी के कारण यह और भी खतरनाक हो जाता है। माता-पिता को यह समझना जरूरी है कि RSV कोई साधारण सर्दी नहीं है; यह एक ऐसी बीमारी है जो शिशुओं के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। इसलिए, WHO की नई सिफारिशें भारत जैसे देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये उपाय शिशुओं को इस वायरस से बचाने में मदद कर सकते हैं।

मातृ टीका (RSVpreF): शिशुओं को जन्म से पहले सुरक्षा?

मातृ टीका, जिसे RSVpreF के नाम से जाना जाता है, गर्भवती महिलाओं को उनकी गर्भावस्था की तीसरी तिमाही (28-36 सप्ताह) में दिया जाता है। यह टीका गर्भवती मां के इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करता है, जिससे वह RSV के खिलाफ एंटीबॉडीज बनाती है। ये एंटीबॉडीज प्लेसेंटा के माध्यम से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंचती हैं, जो जन्म के बाद उसे RSV से सुरक्षा प्रदान करती हैं। इस प्रक्रिया को पैसिव इम्यूनाइजेशन कहते हैं, जिसमें मां के शरीर से बनी एंटीबॉडीज बच्चे को जन्म के पहले छह महीनों तक सुरक्षा देती हैं।

WHO और ऑस्ट्रेलियाई इम्यूनाइजेशन हैंडबुक के अनुसार, यह टीका उन शिशुओं के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है जो RSV सीजन के दौरान जन्म लेते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई बच्चा सर्दियों के महीनों में पैदा होता है, जब RSV सबसे ज्यादा सक्रिय होता है, तो यह टीका उसे गंभीर बीमारी से बचा सकता है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में, यह टीका राष्ट्रीय इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत मुफ्त उपलब्ध है, और भारत में भी ऐसी योजनाएं शुरू करने की जरूरत है।

इस टीके का एक बड़ा फायदा यह है कि यह मां और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित है। मार्च 2025 में WHO ने इस टीके को प्रीक्वालिफिकेशन दिया, जिसका मतलब है कि यह गुणवत्ता और प्रभावशीलता के कड़े मानकों को पूरा करता है। हालांकि, इसे सही समय पर देना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर टीका बहुत जल्दी या बहुत देर से दिया गया, तो यह उतना प्रभावी नहीं हो सकता। माता-पिता को अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए कि यह टीका कब और कैसे लेना है।

नर्सेविमाब (Nirsevimab): शिशुओं के लिए लंबे समय तक सुरक्षा?

नर्सेविमाब एक लंबे समय तक प्रभावी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है, जिसे शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद या RSV सीजन से पहले दिया जा सकता है। यह एक लैब में बनाया गया प्रोटीन है, जो प्राकृतिक एंटीबॉडी की तरह काम करता है। यह शिशुओं को RSV से होने वाली गंभीर बीमारियों से बचाने में 83% तक प्रभावी है, खासकर अस्पताल में भर्ती होने और गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में भर्ती होने से रोकने में।

WHO की सिफारिश के अनुसार, नर्सेविमाब को जन्म के बाद या बच्चे की पहली स्वास्थ्य जांच के दौरान दिया जा सकता है। यह एक सिंगल डोज इंजेक्शन है, जो कम से कम 5 महीने तक सुरक्षा प्रदान करता है, जो आमतौर पर पूरे RSV सीजन को कवर करता है। यह उन शिशुओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जिनकी मां को गर्भावस्था के दौरान RSVpreF टीका नहीं मिला हो। अध्ययनों से पता चला है कि नर्सेविमाब ने शिशुओं में RSV से होने वाली अस्पताल में भर्ती को 71% तक कम किया है, खासकर दो महीने से कम उम्र के बच्चों में।

भारत जैसे देशों में, जहां स्वास्थ्य सेवाएं हर जगह एकसमान नहीं हैं, नर्सेविमाब जैसे उपाय गेम-चेंजर हो सकते हैं। यह न केवल शिशुओं को बचाता है, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली पर पड़ने वाले बोझ को भी कम करता है। हालांकि, इसकी उपलब्धता और लागत अभी भी एक चुनौती हो सकती है, इसलिए सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को इसे सस्ता और सुलभ बनाने के लिए काम करना होगा।

RSV के खिलाफ टीकाकरण क्यों जरूरी है?

RSV शिशुओं के लिए एक गंभीर खतरा है, और इसके खिलाफ टीकाकरण इस खतरे को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है। WHO और अन्य स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, RSV हर साल लाखों बच्चों को प्रभावित करता है, और इससे होने वाली बीमारियां स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी बोझ डालती हैं। खासकर उन देशों में जहां चिकित्सा सुविधाएं सीमित हैं, RSV से होने वाली जटिलताएं माता-पिता और डॉक्टरों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं।

मातृ टीके और नर्सेविमाब जैसे उपाय न केवल शिशुओं को बचाते हैं, बल्कि लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, जैसे लॉन्ग कोविड जैसी स्थिति, को भी रोक सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि RSV से ठीक होने वाले बच्चों में लंबे समय तक श्वसन संबंधी समस्याएं रह सकती हैं। टीकाकरण इन जोखिमों को कम करता है और बच्चों को स्वस्थ जीवन जीने का मौका देता है।

भारत में, जहां नवजात शिशुओं की संख्या बहुत अधिक है, RSV टीकाकरण को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल करना जरूरी है। इससे न केवल बच्चों की जान बचेगी, बल्कि माता-पिता को मानसिक शांति भी मिलेगी। WHO की सिफारिशें इस दिशा में एक बड़ा कदम हैं, और अब सरकारों और स्वास्थ्य पेशेवरों की जिम्मेदारी है कि वे इन उपायों को लागू करें।

भारत में RSV टीकाकरण की चुनौतियां?

भारत में RSV टीकाकरण को लागू करना आसान नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती है जागरूकता की कमी। कई माता-पिता को RSV के बारे में जानकारी नहीं है, और वे इसे साधारण सर्दी-जुकाम समझ लेते हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, टीकों की उपलब्धता, और लागत भी बड़ी बाधाएं हैं। RSVpreF और नर्सेविमाब जैसे उपाय अभी तक भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, और इनकी कीमत भी आम लोगों के लिए एक मुद्दा हो सकती है।

WHO ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक देश को अपनी स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमता और लागत-प्रभावशीलता के आधार पर इन उपायों को लागू करना चाहिए। भारत में, जहां स्वास्थ्य बजट पहले से ही सीमित है, सरकार को इन टीकों को राष्ट्रीय इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल करने के लिए अतिरिक्त फंडिंग की जरूरत होगी। इसके अलावा, स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करना और माता-पिता को जागरूक करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की जरूरत है।

एक और चुनौती है टीकों और मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज की सही समय पर उपलब्धता। RSV सीजन आमतौर पर सर्दियों में होता है, और इस दौरान टीकों की आपूर्ति सुनिश्चित करना जरूरी है। भारत जैसे बड़े और विविध देश में, यह सुनिश्चित करना कि हर बच्चे तक ये उपाय पहुंचें, एक जटिल प्रक्रिया है। फिर भी, अगर सरकार और स्वास्थ्य संगठन मिलकर काम करें, तो यह संभव है कि भारत में RSV से होने वाली बीमारियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

विश्व स्तर पर RSV टीकाकरण का प्रभाव?

RSV टीकाकरण का प्रभाव पहले ही कई देशों में देखा जा चुका है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, जहां RSVpreF और नर्सेविमाब (Beyfortus) पिछले सर्दी सीजन में व्यापक रूप से उपलब्ध थे, दो महीने से कम उम्र के शिशुओं में RSV से होने वाली अस्पताल में भर्ती 52-71% तक कम हो गई। यह एक बड़ा सबूत है कि ये उपाय वास्तव में काम करते हैं। WHO की सिफारिशें अब वैश्विक स्तर पर इन उपायों को लागू करने पर जोर दे रही हैं, ताकि हर देश के शिशु इस सुरक्षा का लाभ उठा सकें।

विकसित देशों में, जहां स्वास्थ्य प्रणाली मजबूत है, इन टीकों और एंटीबॉडीज को लागू करना आसान हो सकता है। लेकिन विकासशील देशों, जैसे भारत, अफ्रीका के कुछ हिस्सों, और दक्षिण-पूर्व एशिया में, लागत और बुनियादी ढांचे की कमी एक चुनौती है। WHO ने इस बात पर जोर दिया है कि इन उपायों को लागू करने के लिए लागत-प्रभावशीलता और स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमता को ध्यान में रखना होगा।

वैश्विक स्तर पर RSV टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए, WHO और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं। मार्च 2025 में RSVpreF को WHO प्रीक्वालिफिकेशन मिलने से यह टीका अब UN एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है, जिससे इसे कम आय वाले देशों में उपलब्ध कराना आसान होगा। यह एक सकारात्मक कदम है, जो वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार ला सकता है।

माता-पिता के लिए RSV टीकाकरण के बारे में सलाह?

माता-पिता के लिए यह समझना जरूरी है कि RSV टीकाकरण उनके बच्चे की सुरक्षा के लिए कितना महत्वपूर्ण है। अगर आप गर्भवती हैं, तो अपने डॉक्टर से RSVpreF टीके के बारे में बात करें। यह टीका आपकी गर्भावस्था के 28-36 सप्ताह के बीच लिया जाना चाहिए, ताकि आपका बच्चा जन्म के बाद RSV से सुरक्षित रहे। अगर आपका बच्चा जन्म के समय यह सुरक्षा नहीं पा सका, तो नर्सेविमाब इंजेक्शन एक अच्छा विकल्प है।

इसके अलावा, RSV के लक्षणों को पहचानना भी जरूरी है। अगर आपके बच्चे को तेज खांसी, सांस लेने में तकलीफ, या सुस्ती जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। RSV के शुरुआती लक्षण सर्दी-जुकाम जैसे हो सकते हैं, लेकिन यह जल्दी ही गंभीर हो सकता है। माता-पिता को अपने बच्चे की सेहत पर नजर रखनी चाहिए, खासकर सर्दियों के महीनों में।

जागरूकता बढ़ाने के लिए, माता-पिता को स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी लेनी चाहिए। भारत में, कई स्वास्थ्य कार्यक्रम मुफ्त टीकाकरण प्रदान करते हैं, और भविष्य में RSV टीके भी इनमें शामिल हो सकते हैं। अपने बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए समय पर टीकाकरण और नियमित स्वास्थ्य जांच बहुत जरूरी हैं।

RSV टीकाकरण का भविष्य?

RSV टीकाकरण का भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखता है। WHO की सिफारिशों और प्रीक्वालिफिकेशन के बाद, अब कई देश इस दिशा में काम कर रहे हैं। वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संगठन लगातार नए तरीके खोज रहे हैं ताकि RSV से होने वाली बीमारियों को और प्रभावी ढंग से रोका जा सके। उदाहरण के लिए, भविष्य में और भी उन्नत मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज या टीके विकसित हो सकते हैं जो लंबे समय तक और व्यापक सुरक्षा प्रदान करें।

भारत जैसे देशों में, जहां जनसंख्या अधिक है, RSV टीकाकरण को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए सरकार, स्वास्थ्य संगठनों, और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा। इसके लिए जागरूकता अभियान, सस्ते टीके, और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं जरूरी हैं। WHO की सिफारिशें इस दिशा में एक रोडमैप प्रदान करती हैं, और अब यह देशों पर निर्भर करता है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं।

वैश्विक स्तर पर, RSV टीकाकरण न केवल शिशुओं की जान बचाएगा, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को भी कम करेगा। यह एक ऐसा निवेश है जो भविष्य की पीढ़ियों को स्वस्थ और सुरक्षित रखेगा।

निष्कर्ष: RSV से अपने बच्चे को बचाएं?

RSV एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है, लेकिन WHO की नई सिफारिशों के साथ, अब हमारे पास इसे रोकने के प्रभावी तरीके हैं। मातृ टीका (RSVpreF) और नर्सेविमाब जैसे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी शिशुओं को जन्म से लेकर उनके पहले कुछ महीनों तक सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये उपाय न केवल बच्चों की जान बचाते हैं, बल्कि माता-पिता को मानसिक शांति भी देते हैं।

भारत में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं और जागरूकता की कमी एक चुनौती है, सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को इन उपायों को लागू करने के लिए तेजी से काम करना होगा। माता-पिता को भी अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूक और सक्रिय रहना चाहिए। अगर हम सब मिलकर काम करें, तो हम RSV के खिलाफ जंग जीत सकते हैं और अपने बच्चों को एक स्वस्थ भविष्य दे सकते हैं।

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